भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नवागमन / अशोक लव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गूंजी एक किलकारी
गर्भाशय से निकल
ताकने लगा नवजात शिशु
छत, दीवारें, मानव देहें

प्रसव पीड़ा भूल
मुस्कुरा उठी माँ
सजीव हो उठे
पिता के स्वपन

बंधी संबंधों की नई डोर
तीन प्राणियों के मध्य
हुई पूर्णता
नारी और पुरुष के वैवाहिक संबंधो की

नन्हे शिशु के संग जागी
आशाएँ

पुनः तैरने लगे
नारी और पुरुष के मध्य
नए-नए स्वपन
नवजात शिशु को लेकर