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नहीं जाऊंगा सभा में / सुभाष मुखोपाध्याय

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जो मुझे चाहता है
मैं उसके पास जाऊंगा।
गले में नहीं खिलते सुर
फिर भी मैं गाऊंगा गीत
मृदंग बजाऊंगा
बारिश आने पर
बाहर निकलूंगा भीगने
यदि डुबा सके तो नदी डुबाए मुझे।
तीर्थ करने मैं नहीं जाना चाहता
शून्य में नहीं है कोई फ़ायदा!
क्यों पुकारते हो
मन नहीं है, नहीं जाऊंगा सभा में।

मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी