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नहीं जाग पाता हूँ जो / नंदकिशोर आचार्य

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एक सपना है
जिस में डूबा है ईश्वर
                 निरन्तर—
गो छटपटाता हुआ—
सपना हो चहे
जागना नहीं है अब उसे

ख़ुद ईश्वर से बड़ा है
                  सपना
जिस को देख कर
ईश्वर हुआ है वह

फिर मेरा दोष क्या इस में
नहीं जाग पाता हूँ जो मैं
सपने से अपने ?

26 मार्च 2010