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नहीं वासना नहीं कामना / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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नहीं वासना, नहीं कामना, नहीं रागमय किंचित्‌‌ भोग।
श्याम-सुधा-सागर पवित्र में नित एकत्वपूर्ण संयोग॥
जीवन-मरण, मिलन-बिछुडऩ की कभी न को‌ई रहती बात।
किसी बाहरी स्थिति का होता कभी न प्रिय-‌अप्रिय आघात॥
देश-कालसे कभी न होता किंचित्‌‌ भी कदापि व्यवधान।
मिले सदा रहते, अमिलन का होता कभी न किंचित्‌‌ भान॥
होता कभी न प्रेमास्पद-प्रेमी स्वामी-सेवकका भेद।
रहता सदा अभिन्न भाव शुचि, रहता नित्य पवित्र अभेद॥