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नागपुर के रास्ते–1 / वीरेन डंगवाल
Kavita Kosh से
गाड़ी खड़ी थी
चल रहा था प्लेटफार्म
गनगनाता बसन्त कहीं पास ही में था शायद
उसकी दुहाई देती एक श्यामला हरी धोती में
कटि से झूम कर टिकाए बिक्री से बच रहे संतरों का टोकरा
पैसे गिनती सखियों से उल्लसित बतकही भी करती
वह शकुंतला
चलती चली जाती थी खड़े-खड़े
चलते हुए प्लेटफारम पर
ताकती पल भर
खिड़की पर बैठे मुझको