भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नागपुर के रास्ते–2 / वीरेन डंगवाल
Kavita Kosh से
सुबह कोई गाड़ी होती तो बहुत अच्छा
रात कोई गाड़ी होती तो बहुत अच्छा
चांद कोई गाड़ी हो तो सबसे अच्छा
सुबह कोई गाड़ी हो तो मैं शाम तक पहुंच जाता
रात कोई गाड़ी हो तो मैं सुबह तक पहुंच जाता
चांद कोई गाड़ी होती तो मैं उसकी खिड़की पर ठण्डे-ठण्डे बैठा
देखता अपनी प्यारी पृथ्वी को
कहीं न कहीं तो पहुंच ही जाता