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नाचै छै मोर / अवधेश कुमार जायसवाल

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कारी बदरिया बरसै छै झम-झम
पानी केॅ बून लगै चांनी रंग चम-चम
बादल केॅ शोर घनघोर
हे सखी, खेतोॅ में नाचै छै मोर।
पुरवा पुरजोर बहै, डोलै छै गछिया
बिजली जों कड़कै तेॅ बिदकै छै बछिया
पगहा पर मारै छै जोर
हे सखी, छप्पर पर नाचै छै मन मोर।
कोठी बिलैया, ओलती बकरिया
बिलोॅ में बेंग घुसलोॅ, खोता चिड़ैय्या
ताकै छै चन्दा चकोर
हे सखी, मोरनी संग नाचै छै मोर।
दादा जी सŸाू सुड़कै छै सुड़-सुड़
दादी केॅ हुक्का बाजै छै गुड़-गुड़
लड़कन मचाबै छै शोर
हे सखी, झूमी-झूमी नाचै छै मोर।
घरनी के चूड़ी खनकै छै खन-खन
सुनी-सुनी सैंया मुस्कै छै मन-मन
देखी-देखी ननदी विभोर
हे सखी, घूमी-घूमी नाचै छै मोर।
ओलती सें धार गीरै बचबा नहाबै छै
अंगना में धार चलै, नैय्या चलाबै छै
देखी-देखी मैया विभोर
हे सखी, अंगना में नाचै छै मोर।
कन्धा पर होर धरी खेतबा किसान गेलै
माटी केॅ कोड़ी-कोड़ी बरदा हलकान भेलै
पुट्ठा पर मारै छै जोर
हे सखी, खेतबा में नाचै छै मोर।