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नाटक हो रहा है / सुदर्शन वशिष्ठ
Kavita Kosh से
धन्य है नाटक के पात्र।
जो करते हैं
होते नहीं
जो होते हैं
करते नहीं
हँसते हैं औरों के लिए
हँस नहीं रहे होते
रोते हैं
तो रो नहीं रहे होते
जीते हैं तो परकाया में
जीव की तरह।
धन्य हैं नाटक के पात्र।
जो सामने-सामने साफ़-साफ़
करते हैं नाटक
अच्छे हैं उनसे
जो हमेशा करते हैं नाटक
बताते नहीं।