भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाभि में / पीयूष दईया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सच है
मुझे जिस्म की तलाश कभी नहीं रही
सब मिलतीं चली गईं
मै भोगता रहा
--प्यार

काश! धूल झोंकता समय
अपना पाता

छूट गया जो
जिस्म की नाभि में
अमर है