भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाम / कुबेरनाथ राय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कल रातभर हवायें आती रहीं
रचती रहीं एक वातावरण
एक सुगन्धित नाम।
देती रहीं सांस लेती हुई पहाड़ी घासों की
एक वासंती मँह-मँह संवाद
मनमें बार बार दुहरायी गयी
एक पुरानी तृषा, एक पुरानी प्रार्थना
कुछ अपरिचित संज्ञायें
कुछ दुलराये सहलाये नाम।

वैसे रात थी कालिमामयी घनघोर
सूचीभेद्य अंधकार
नदी थी भयग्रस्त
स्तब्धतट एकान्त
पीत चक्षु सरीसृप बांबियों से निकल
मुँह फाड़ विचरण करते है
और रुदन करते हैं उलूक
पुकारते नाम।

तभी इस महाभय के अतल से
हमारी तुम्हारी पहचान अचानक
ऊपर उतरा गयी
स्मरण आयी तुम्हारी एक
फुल्लकुसुमित कथिका
और स्मृतियों के उलझे कान्तर में
फूटा फूल सा सुगन्धित तुम्हारा नाम।

कि,
उदास, स्तब्ध, भयग्रस्त रात
बन जाती है एक सुगन्धित
कोमलकान्त शब्दों का बन-उपवन।
पराजित हो जाती है अंध अमोध नियति
और सारे सरीसृप लज्जित हो
लौट जाते हैं बांबियों में,

कि,
वह भयग्रस्त कालीरात
बन जाती है एक उज्ज्वल उद्धार
एक प्रसन्न उत्फुल्ल चन्द्रोदय;
एक लीला, एक प्रार्थना, एक पुष्पांजली
एक साश्रुकण विरह और मुक्ति
एक वृन्दावन धाम;

कितना शक्तिधर है
तुम्हारी कबकी एक भूल गयी कथिका
तुम्हारा वह चपल चटुल
नन्हा सा नाम।।

(1987 की डायरी से)