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नामविश्वास / तुलसीदास/ पृष्ठ 5

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नामविश्वास-5

(73)

जायो कुल मंगन, बधावनो बजायो, सुनि ,
 भयो परितापु पापु जननी-जनकको।

बारेतें ललात-बिललात द्वार-द्वार दीन,
 जानत हो चारि फल चारि ही चनकको।

तुलसी सो साहेब समर्थको सुसेवकु है,
 सुनत सिहात सोचु बिधिहू गनकको।

नामु राम! रावरो सयानो किधौं बावरो ,
जो करत गिरीतें गरू तृनतें तनकको।।

(74)

बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
 रामनाम ही सो रीझें सकल भलाई है।


कासीहू मरत उपदेसत महेसु सोई,
 साधना अनेक चितई न चित लाई है।

छाछी को ललात जे, ते रामनामकें प्रसाद,
खात, सुनसात सोंधे दूधकी मलाई है।

रामराज सुनिअत राजनीति की अवधि,
नामु राम! रावरो तौ चामकी चलाई है।।