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नामशेष / नीरव पटेल / मालिनी गौतम

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किस शैतान शिल्पी ने
जन्म लेते ही गोद दिया है
मेरा नाम मेरे माथे पर

वृक्ष के तने की
छाल को कुरेदते हो
तो इस तरह मेरी रक्तवाहिनियों में
चाकू डुबो-डुबो कर
तुम क्यों मेरी संज्ञा को खोदते रहते हो?

मैं तो भूल ही जाना चाहता था अपना नाम
इसीलिए तो एक बार आधी रात को
घर-गाँव छोड़कर निकल भागा था शहर की ओर

यहाँ आकर मैंने
मेरे नाम का स्तुतिगान करने वाली झाड़ू के डण्डे पर
फहराया था
इंक़लाब का ध्वज

मेरे नाम की रचना करने वाले एक-एक अणु को
मैंने पिघला दिया है यहाँ के
कास्मोपोलिटन कल्चर के घोल में

मेरे नाम की केंचुली उतारकर
मैं किसी अनाविष्कृत तत्त्व की तरह
बन गया हूँ निर्मल
और नवीन माइक्रोस्कोप की आँंख भी
अब मुझे नहीं पहचानती
पर गिद्ध जैसी तुम्हारी आँख की चोंच
क्यों बार-बार मेरे नाम के
मुर्दा शरीर को कोंचती रहती है?

अरे, मुझे तो भय है कि
मेरी चिता के साथ भी
क्या नहीं मरेगा मेरा नाम?
 
अनुवाद : मालिनी गौतम