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नामाबर भी न मोतबर निकला / ईश्वरदत्त अंजुम
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नामाबर भी न मोतबर निकला
राज़दां हो के पुर-ख़तर निकला
प्यार में हम ने वो कशिश देखो
ज़हर नफ़रत का बे-असर निकला
मेरी किस्मत में थी वो तारीकी
एक तारा न रात भर निकला
बारहा हम ने सर को टकराया
फिर भी दीवार में न दर निकला
मौत आई न थी तो खटका था
मौत आई तो दिल से डर निकला
शहर की भीड़ में मुझे लाया
रास्ता कितना पुर-ख़तर निकला
मैं समझता था जिस को दूर-अंदेश
पास आया तो कम-नज़र निकला
उस की रहमत में कुछ कमी न थी
मेरा दामन ही तंग-तर निकला
आंख पुर-नम न हो सकी 'अंजुम'
दामने-दिल तो तर-बतर निकला।