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नायिका / अर्चना कुमारी
Kavita Kosh से
बातों की छीलता हुआ तुम
और रेशा-रेशा निकालता मैं
मन के करघे पर रेशम नहीं तान पाता
नहीं बुन पाता बनारसी साड़ी
सारी उलझनों के सुलझने के बाद
धागों की स्मृतियां
चिपकी रह जाती हैं हाथों से
उभर आती है उबान बनकर कपड़े पर
उम्र की लडिय़ों से
एक मोती टूटने के बाद
तुम की आंखों में तेजाब उतरता है
और मैं की आंखों में सैलाब
तमाम नजदीकियां घूरने के बाद
करीब से
पुराने खेल की चोट
आशंकाएं दृढ़ कर जाती हैं
नये दर्द की
भागता रहता है दिलजला दिल
पानी की जलन लेकर
नदी देखकर घबराया हुआ
समंदर से दोस्ती कर
चुनता है खाली सीपियां
वो नायिका
जिसने प्रेम को परीक्षाओं में
अनुत्तीर्ण होने के बाद भी
बड़े प्रेम से अपनाया
उसका नाम नदी है !