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नारी / कविता कानन / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
नारी का भाग्य
केवल जलना
झुलसना
आग की लपटों में
कभी दहेज की आग
कभी
मानसिक उत्पीड़न की
तो कभी
शारीरिक अत्याचारों की
कितने प्रतिबंध
कितनी रोक टोक
चिपटी हुई
सामाजिक मान्यताएँ
प्रताड़नाओं की जोंक
तीन शब्द
तलाक तलाक तलाक
और समाप्त रिश्ता
जीवन भर का ।
दहेज कम मिला
मार दिया ।
मन को न भायी
जला दिया ।
यही है उपलब्धि
सम्पूर्ण समर्पण की
सेवा सत्कार की ।
कब मुक्त होगा
नारी का तन मन ?
कब टूटेंगी
यह वर्जनाओं की
श्रृंखला ?
आखिर कब ?