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नाला-ए-जाँ-गुदाज़ ने मारा / जोश मलसियानी

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नाला-ए-जाँ-गुदाज़ ने मारा
सोज़-ए-उल्फ़त के साज़ ने मारा

ये कहा पढ़ के मेरा नामा-ए-शौक़
उस सरापा नियाज़ ने मारा

मुँह से उफ़ भी तो कर नहीं सकते
ख़ौफ़-ए-इफ़शा-ए-राज़ ने मारा

ज़िन्दगी चैन से गुज़रती थी
चश्म-ए-नज़्ज़ारा-बाज़ ने मारा

दाद भी शौक़-ए-दीद की न मिली
जल्वा-ए-बे-नियाज़ ने मारा

मौत की ज़द से बच गया जो कोई
उस को उम्र-ए-दराज़ ने मारा

उँगलियाँ हर तरफ़ से उठती हैं
तुर्रा-ए-इम्तियाज़ ने मारा

कोई दम-साज़ कोई है जाँ-बाज़
आप के साज़-बाज़ ने मारा

जिस के क़ब्ज़े में है मसीहाई
हम को इस तेग़-ए-नाज़ ने मारा

क्या भरोसा किसी पे हो ऐ 'जोश'
दिल को इक दिल-नवाज़ ने मारा