भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निकम्मा/ शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
गलत है आपका यूं हमको निकम्मा कहना
ये क्या कम काम है अपनी जगह बने रहना
जिसके चारो् तरफ हों टांग खींचने वाले
पैर अंगद का भी मुश्किल है अब जमे रहना
ठीक था गर मेरे दुष्मन बुरा भला कहते
इतना आसां नही अपनों के ही ताने सहना
किससे कैसे कहें हम दिल के दर्द का किस्सा
हार कांटों का खुद हमने ही तो गले पहना
आँधी तूफान में निर्भय अडिग खड़ा रहता
गर्म वातों से हिमालय को भी पड़े बहना
खुद को मालूम न अंजामे बयां क्या होगा
उनकी कोशिश है बस अखबार में बने रहना
साथ चल पायेंगे हम जाने इस तरह कब तक
उनकी आदत है हर एक बात पर अड़े रहना