भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निमंत्रण / सुशान्त सुप्रिय
Kavita Kosh से
ओ प्रिय
आओ कोई ऐसी जगह तलाश करें
जहाँ प्रतिदिन मूक समझौतों के सायनाइड
नहीं लेने पड़ें
जहाँ ढलती उम्र के साथ
निरंतर चश्मे का नंबर न बढ़े
जहाँ एक दिन अचानक
यह भुतैला विचार नहीं सताए
कि हम सब महज़
चाबी भरे खिलौने हैं
चलो प्रिय
कौमा और पूर्ण-विराम से परे कहीं
जिएँ