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निमिया सेवा / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

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तुलसी पीपल
जैसी पूजा
दादी करतीं सदा नीम की

रोज नहाकर
अक्षत जल दें
मानस पढ़तीं भजतीं देवा
फूल चढ़ातीं
दीप जलातीं
करती रहतीं निमिया सेवा

पाँव पसारें
चेचक जब-जब
पत्ती देतीं सदा नीम की

अगर त्वचा पर
फोड़ा खुजली
घिस-घिस कर वे छाल लगातीं
नये गुलाबी
किसलय को वे
सबको खाली पेट खिलातीं

सकल गाँव की
हुईं डाक्टर
वैद्य रही हैं वे रहीम की

सावन में तुम
झूला डालो
नीम न काटो मेरे पुत्तर
यही अमृता
है जीवन की
लिख कर रख लो मेरा मंतर

इसके संग
रहो तुम बेटों
नहीं जरूरत है हकीम की