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नियति / विमल राजस्थानी

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नहीं अदृश का अता-पता कुछ चला पाता है
होनी का रथ-चक्र लीक से टल पाता है ?
सँभला-सँभला मानव भी न सँभल पाता है
मैं होनी हूँ, जग मुझको सकता नहीं टाल
मैं पकड़ हाथ उस ठौर खींच ले जाऊँगी
निश्चित है यह भी मैं जो करना चाहूँगी
राके न रुकूँगी, अपना धर्म निभाऊँगी
मैं वन, पर्वत, क्षिति, नदी, ताल
फेंकती चतुर्दिक महाजाल
मै होनी हूँ, जग मुझको नहीं सकता टाल
जप-तप पूजा, ग्रह-शांति-यत्न
बदलेंगे भाग्य न कभी रत्न
सब मन बहलाने के प्रयतन
बन सकते हैं ये नहीं ढ़ाल
मैं होनी हूँ, जग मुझको सकता नहीं टाल
मैं नियति विश्व-उर की धड़कन
रवि-शशि की ज्योति-विभा, नक्षत्रो की गति, तारे का कंपन
मै नियति, विश्व-उर की धड़कन
मैं ऊबड़-खाबड़, पथरीलीं
मेरी आँखे नीली-पीली
मणि-मुक्ताओं की माला मैं
नागिन भी हूँ मैं जहरीली
धन बरसा देती कुटियों पर, महलो को कर देती निर्धन
मैं नियति, विश्व-उर की धड़कन
सष्ट्रा को भी छोड़ती नहीं
जो नियम बँधे, तोड़ती नहीं
हैं निर्धारित पथ, जीवन के-
गंतव्य, उप्हे मोड़ती नहीं
डूबे जग लाख सिन्धु-तल तक, छू सकता है न नियति का मन
मैं नियति, विश्व-उर की धड़कन
मैं मुक्ति-मोक्ष, जागृति-जड़ता, मैं उथल-पुथल, मैं परिवर्तन
मैं नियति, विश्व-उर की धड़कन
है प्रकृति नाचती इंगित पर
विधि भी जाता विस्मय से भर
मेरी माया बिखरी-पसरी
घर-आँगन-आँगन, डगर-डगर
मेरी इच्छा से राजमुकुट, मेरी इच्छा से सिंहासन
मैं नियति, विश्व-उर की धड़कन
मद्रिका डूब जाती जल में, सोने का जाता बन
मैं नियति, विश्व-उर की धड़कन
जाल जिसमें उलझ जीवन छटपटाता
नियति बुनती कम, मनुज बुनता अधिक है
व्यर्थ देता दोष
विधि को, भाग्य को है
स्वयम् देता वह
निमंत्रण आग को है
और उसमें सुलगता,जलता निरंतर
आप अपने आप का होता वधिक है