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निरमान / ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन'

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उठ उठ भैया ई तो, देसवा बिगड़ गेलो,
एकरा बनावे ला उपाय कर मन से।
ठौरे-ठौरे लूटपाट बटमारी रोज-रोज,
होवे दिनरात इहाँ गोली चले भन से।
ममता और समता न दिलवा में केकरो के,
पसरल कालकूट कुटिल कुजन से।
हरन दमन छल सोसन के ठाट-बाट,
चमक रहल रोज डाह अनबन से॥

दिनवो में डर लगे, रात में बेहाल मन,
हँसी खुसी उड़ गेल प्रान के चमन से।
दूसर के बखरा के लूटे औ खसोटे सभे,
बनल कुबेर दौड़े सोसन दमन से ।
टिसुना के अगिया के आँच हे बढ़ल जादे,
जल-जल मरे सब ओकरे दहन से।
लहकल अरमान सपना जलल सब,
देसवा में चैन कहाँ बढ़ल जलन से॥

दिन-रात जूझे मिल झगड़ा झकोर लावे,
फूटे न नियम नय, कबहूँ वचन से।
बँटल ई धरती के अंग-अंग काटे लागी,
बाँटे लागी रार करे भैया हो जतन से।
गाँधी के सपनमा भी मिट गेलो मटिया में,
रामराज लावे लागी भावना भुवन से।
रोटिया ला रटे भैया जड़वा में किकुरल,
काँपे काया थरथर निठुर पवन से।

दिलवा में कसक कचोट उठे पैंग मारे,
लावे ला सुराज के बहार भैया दन से।
आव आव धरती के सरग बनाव अब,
एकरा उठाव झट ऊपर गगन से।
लालसा के लहर जगाव भैया देसवा में,
काट के अन्हार भैया सुरुज किरन से॥
दप-दप चकमक जोतवा जगाके भैया,
देसवा के भर रोज आज अनधन से॥