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निर्गुणाचा संग धरिला जो आवडी / गोरा कुंभार
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निर्गुणाचा संग धरिला जो आवडी। तेणें केलें देशधडी आपणासी॥ १॥
अनेकत्व नेलें अनेकत्व नेलें। एकलें सांडिलें निरंजनीं॥ २॥
एकत्व पाहतां अवघेंचि लटिकें। जें पाहें तितुकें रूप तुझें॥ ३॥
म्हणे गोरा कुंभार ऐका नामदेव। तुह्मा आह्मा नांव कैचे कोण॥ ४॥