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निर्मोही कैसे हुए प्राण! किस भाँति बिसार दिया ममता / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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निर्मोही कैसे हुए प्राण! किस भाँति बिसार दिया ममता।
मुझको कहते मधु-पूर्णचन्द्र निज को थे रहे चकोर बता।
क्या निविड़ निशा के प्रिय प्रगाढ़ परिरंभण हो सकते झूठे।
सह लेते अधर अधर-चुम्बन-मनुहार न पर होते जूठे।
क्या देखोगे न सॅंवारा था जो केश हमारा निज कर से।
तरसें कब से ये प्राण अरे घनश्याम नहीं बरसे-बरसे।
बेपीर! न दूर रहो विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥104॥