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निसर्ग प्रकृति / लावण्या शाह

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जीवन क्या है तू ?
तू है रेत !
मैं बयार ~
कैसे थामूं
तेरा हाथ ?
पकड़ पकड़
खो दिया री
जीवन बिता
बीत गया री !
तेरी गति
मैं हूँ ~
जीवन मेरे,
बहते झरने
मैं प्रवाह हूँ !
तुझको ही ले
बह निकलूं ~~
एक पल भी ना
आया साथ ~
दीपक एक जलता
सारी रात !
काजल फैला
बाती गली
जीवन तू है मौज
जिससे निकली
उसी में लीन !
खो जाना री
डूब के अनजान !
यह ईश्वर का प्रतिमान
प्राण प्रवाह अनंत !
चिर विस्मयकारी !
बहेगा, मिटेगा,
जीवन पीछे छूटेगा।