निसहाय / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
नद्दी के पखलोॅ रं पड़लोॅ अकेलोॅ छीं
आदमी के सोतोॅ में भाय रे!
एक टा अभागला के एत्तोॅ टो दुनियाँ में
सुनबैया कोय नी, हाय रे!
एक वोहो दिन छेलै- ”टटका वसन्तोॅ के
किलकारी जिनगी के गाँव में;
भमरा के लार्होॅ चिरैया के फुस्सोॅ,
महकौवा हवा के छाँव में,
भरलोॅ दुपहरिया में मँजरैलोॅ आमोॅ के
नेतोॅ तक छेलै बलाय रे!“
खोपा तक सँसरलोॅ नुंङा सम्हारी केॅ
अगवानी आँखी के कोर में;
आबेॅ नै नेहोॅ सें मुस्की केॅ देखै छेॅ
पूबोॅ के दुलहिन ने भोर में,
मदमाछी छत्ता सें एक दिन अनचौके में,
कहाँ तेॅ गेलै पराय रे!
रोजे दिन हमरा सें करछी के भागै छेॅ,
मलयानिल घिरना के भाव में
ईरा सें भरी केॅ लू लागले रही छेॅ
सद्दोखिन दाहै के दाव में,
तड़पै छीं छटपट, छुटकरा के बचलोॅ छै,
खोजी देॅ कोनी उपाय रे!