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निहारता हूँ मैं / शक्ति चट्टोपाध्याय / मीता दास
Kavita Kosh से
उठा लाओ पेड़ों को, यहाँ बग़ीचा बनाओ
हमें अब पेड़ों को निहारने की ज़रूरत है
सिर्फ़ पेड़ों को निहारना
पेड़ों में जो हरापन है, उसकी ज़रूरत है देह को
आरोग्य बने रहने के लिए
इसलिए हमें हरेपन की सख़्त ज़रूरत है
अनेक दिन हुए मैंने जंगल में नहीं काटे दिन
अनेक दिन हुए मैं गया भी नहीं जंगल
अनेक दिन हुए मैं शहर में ही हूँ
शहर में सारी बीमारियाँ मुँह खोले खड़ी हैं
वे सिर्फ हरापन ही निगलती हैं
हरेपन की हो रही है कमी...
इसलिए पेड़ों को यहीं उठा लाओ
यहाँ बग़ीचा बनाओ,
मैं निहारूँ
आँखें तो देखना ही चाहती है हरापन ।
देह भी चाहती है हरा-भरा बगीचा
पेड़ लाओ,
बगीचा बनाओ।
मैं निहारूँ ।
मीता दास द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित