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नींद में हो रही बारिश / यश मालवीय
Kavita Kosh से
ख़्वाब सच हों, है हँसी हर चन्द कोशिश
नींद ही में हो रही है कहीं बारिश
रात, काली रात
उजली-सी पहाड़ी
खिलखिलाकर हँस रहा
मौसम अनाड़ी
बीच जंगल में कहीं पर
रुकी गाड़ी
जुगनुओं की जल रही बुझ रही माचिस
साँवले-से
रोशनी के हैं इशारे
हवा चलती
पेड़ होते हैं उघारे
घाटियों से ही
नदी का घर पुकारे
हर लहर शोला कि है हर लहर आतिश
लड़कियों से
झील-झरने खेत हारे
फूल अपनी पत्तियों को
आँख मारे
ओट में शरमा रहे हैं
गीत सारे
पढ़ रहे हैं सोबती का ’दिलो-दानिश’