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नीति सम्मिलित दोहे 4 / मुंशी रहमान खान

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सज्‍जन सोइय सराहिए विपति में आवै काम।
दुर्जन पास न आवहीं बनें हरत हैं दाम।। 1

सज्‍जन किशमिश अमित रस भीतर बाहर नर्म
खाए पावहु अमृता संगति से शुभ कर्म।। 2

दुर्जन पुंगीफल कुरस भीतर बाहर पुष्‍ट।
खाए स्‍वाद न पावहू संगति से गुण नष्‍ट।। 3

लोभी लंपट लालची तीनहुँ एक समान।
नहिं खर्चें धन धर्म हित मुए खांय शैतान।। 4

खर्चहु धन तुम सुकृत का अपने ईश्‍वर हेत।
लूटहु यश दुहुँ लोक महं मुए मुक्ति फल देत।। 5

मातु पिता पोषण करहुँ अरु पोषहु परिवार।
मानहुँ ईश्‍वर एक तुम इन बिनु नहिं निस्‍तार।। 6

जो जैयो घर मित्र के लीजौ उन्‍हें पुकार।
सूने पैर न दीजियो लगै तुम्‍हें बौछार।। 7

करिहौ संगति खलन की खल स्‍वभाव ह्वै जाय।
पय पावै संग आग का उफन कै आगी खाय।। 8

संगति सज्‍जन की भली दुहूँ लोक बनि जाय।
ज्ञान प्रकाशै जगत महं पिय को देत मिलाय।। 9

सीख ईख से लीजिए खल सज्‍जन परमान।
खल काटै रस दे सजन खोल आँख रहमान।। 10