भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नीलकंठ / शिव कुमार झा 'टिल्लू'
Kavita Kosh से
शंकर सन अहँक कंठ नील अछि
नील गगनमे नहि चालि ढील अछि
टुहटुह हरियर गाछ संग संगम
देह पाँखि पर नहि गोट तिल अछि
देख क' जननीसुत बनबथि जतरा
मुदा अहँक चांगुरमे नहि अछि पतरा
सभ दिन अहाँ एक्के रंग बुझै छी
हरियर गाछ विरीछ पर बिचरै छी
आइ अहँक अछि आँखि नोरायल
दर्शन लेल लोकसब जाल बझायल
विजयदशमीक पावन अवसर पर
टका अरज' लेल घूमाबय घरे'घर
काल्हि एकादशीकेँ पुरुब उड़ायत
तखन अहँक टोल मारि भगायत
ई दर्शन नहि अन्याय कर्म अछि
विहग बचाब' सभक धर्म अछि
आब कत' अहाँ उड़ब हे प्रियवर
ठुठ्ठ गाछ पर प्रिय प्राण ई कातर
अंतिम आश कोमल पाँखि छिड़िआउ
हमरे घरकेँ अपन निडर वास बनाउ
हम नहि उनटायब कहियो पतरा
अहीँक खुशीमे ब'नत हमरो जतरा