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नूवां अरथ / मोहम्मद सद्दीक

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आंख देख अणजाण
ताकड़ी इतरा राखै काण
जीभ री उतरी-उतरी पाण
मिनख रै पेट पळै कुबाण
हिवड़ै पनपै हेत मिनख मन जोयो कोनी रे
मनरो गरब गुमान मानखा धोयो कोनी रे
भान तन्नै होयो कोनी रे।।

बोलै बोल अजाण
ज्ञान रा टुकड़ा जोड़ मती
जूनी जाण पिछाण
दरद रो धीरज तोड़ मती
भाग, भरम, भगवान
पुराणी थांरी बाण कुबाण
बिगड़ग्यो बिरमा जी रो घाण
भान तन्नै होयो कोनी रे
मिनखपणै रो बीज धरा पर बोयो कोनी रे।।

बोदी जुण जुगां भुगत्योड़ी
बासी बोल बिसरणा है
ना धरती रो बीज बांझड़ो
नूंवां अरथ सिरजणा है।
हाट हियै रो खोल अंणतो
विपदावां मत तोल
दरद नै दे संजोरा बोल
मिनख-मन धोयो कोनी रे
हिवड़ै पनपै हेत मिनख-मन जोयो कोनी रे

आं रूंखां पर पांख पंखेरू
कुरळावै ना सुरळावै
भीतर भार भरोसां दीनी
चिरळावै ना गरळावै
मिनख नाख दे हाण
लोथ में कुणसौ फूंकै प्राण
बगत नै भोग्यां आवै ताण
ग्यान तन्नै होयो कोनी रे
हिवड़ै पनपै हेत मिनख-मन जोयो कोनी रे।।