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नेरूदा की अन्तिम कविता / पाब्लो नेरूदा
Kavita Kosh से
निक्सन, फ़्रेई और पिनोशे
आज की तारीख़ तक, सन 1973 के
इस कड़वे हृदय-विदारक महीने तक
बॉर्दाबेरी, गारास्ताज़ू और बांज़र के साथ
भूखे लकड़बग्घे हमारे इतिहास के,
चूहे कुतरते हुए उन परचमों को
जिन्हें जीता गया इतने सारे ख़ून और इतनी सारी आग से
बागानों में कीचड़ से लथपथ
नारकीय लुटेरे, हज़ार बार ख़रीदे-बेचे गये क्षत्रप
न्यू यॉर्क के भेड़ियों द्वारा उकसाये गये
डॉलरों की भूखी मशीनें
अपने शहीदों की क़ुरबानी के धब्बों वाली
अमरीकी रोटी और हवा के भड़वे सौदागर
हत्यारे दलदल, रण्डियों के दलाल मुखियों के गिरोह,
लोगों पर कोड़ों की तरह भूख और यातना बरसाने के अलावा
और किसी भी क़ानून से रहित।