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नेह-भरे ख़त / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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211
मज़में लगे।
हमदर्दी जताते
गुम हो जाते ।
212
ख्वाब -से टूटे
सगे जो थे हमारे,
बेबात रूठे ।
213
नीड़ बिखरा
आँधी उड़ा ले गई
सभी तिनके ।
214
दाग़ दिल के
होंठों पर दुआएँ
सबको भाएँ ।
215
कलेजा चीर
कह न पाते पीर
कौन मानेगा ।
216
दुआएँ उगी
मन में अंकुर-सी
जाने न कोई।
217
कहाँ खो गए वे,
नेह -भरे ख़त जो
आँसू से सींचे।
218
कम्पित हाथों
खोले हमने ख़त
जीभर चूमे ।
219
शब्द तुम्हारे
खुशबू नहाए थे
किसने छीने !
220
झील-से तिरे
डबडबाते नयन
खूब रुलाते ।
221
भोर –किरन
हँस माथे को चूमे
खिलें नयन ।
222
ठिठुरे पात
कोहरे का कहर
दिन में रात ।
223
अंधी रौशनी
टटोल रही रास्ता
कोहरा घना !
224
जीवन गीत
हर साँस संगीत
सुने ,जो मीत ।
225
बीहड़ वन
हिंस्र जीवो से घिरा
यही जीवन ।