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नैनं छिदन्ति शस्त्राणि / सोमदत्त
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भूमैय्या किस्टैय्या गौड़ की याद में
माना की आवाज़ नहीं रही
माना कि झूल कर लटक गया जो सिर
वह अपनी निर्भयता से तुममें भय नहीं पैदा करेगा,
वह बाँह, जो सीधी तनकर संभालती थी
मरियल मानुसों और ताकतवर हथियार को एक से मोह से
बेजान हो गई और दूसरी, जो उसे सहारा देती थी
हर क़दम पर
लोथ हुई
वे पाँव जो तुम्हारी सारी मशीनरी की अश्वशक्ति से
भारी पड़ते थे
अपनी गति, अपनी ऊर्जा, अपने उपकरण होने में उस इरादे के
जिसकी वज़ह से हुआ ये सब
नाटक जिरह का
निर्णय के तराजू के पलड़े पर,
वह इरादा
मर कर भी इस इरादे के हर दुश्मन को मारता है
आप की ही गीता का वह श्लोक : नैनं छिदन्ति शस्त्राणि...