नौजवानों से / कांतिमोहन 'सोज़'
बढ़े मजूर उनके साथ चल रहे किसान !
उठो निशान थामकर वतन के नौजवान !!
उबल रही हैं ख़ून में जूनून की कहानियाँ
नई दिशा दिखा रही हैं वक़्त की निशानियाँ
हवा-सी घूम-घूमकर घटा-सी झूम-झूमकर
नई ज़मीन तोड़ने निकल पड़ीं जवानियाँ
सरों पे सबके है कफ़न हथेलियों पे जान !
उठो निशान थामकर वतन के नौजवान !!
नज़र-नज़र उठा रही है लाख-लाख आँधियाँ
नज़र-नज़र गिरा रही है लाख-बिजलियाँ
जो लाख आँधियाँ उठें जो लाख बिजलियाँ गिरें
कहाँ बचेंगे इस जहाँ में ज़ालिमों के आशियाँ
बराबरी की नींव पर उठे नया मकान !
उठो निशान थामकर वतन के नौजवान !!
बला का ज़लज़ला है थरथरा रही पहाड़ियाँ
ग़रूरे-इन्क़लाब से दमक रही हैं खाड़ियाँ
जो खेल जायँ जान पर चमन की आन-बान पर
वो जांसिपर हसीन गुल खिला रही हैं झाड़ियाँ
क़दम मिलाके चल पड़े मजूर और किसान !
उठो निशान थामकर वतन के नौजवान !!