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नौनिहाल तू जाग / नंदेश निर्मल

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गंगा मौसी सबकी मौसी
घर-घर में वह जाती रहती
बच्चों के अभिभावक जन को
जाग-जाग समझाती रहती।

गंगा मौसी सबकी मौसी
घर-घर में वह जाती रहती

नित-नित काम यही वह करती
दूर-दूर तक पैदल चल कर
खूब लड़ाई लड़-लड़ कर वह
पीठ सदा सहलाती रहती।

गंगा मौसी सबकी मौसी
घर-घर में वह जाती रहती

शिक्षित होने के मतलब को
गा-गा कर कर बतलाती रहती
कल का सूरज तेरा होगा
विनय गीत वह गाती रहती।

गंगा मौसी सबकी मौसी
घर-घर में वह जाती रहती

वृक्ष लगा कर घर-घर मौसी
मीठा फल खिलवाती रहती
पढ़ते-लिखते बच्चों को वह
प्यार हमेशा करती रहती।

गंगा मौसी सबकी मौसी
घर-घर में वह जाती रहती

देखा-देखी मौसी की कर
स्वाति, नेहा जतन लिये है
ले बुखार जनशिक्षा की वह
पग से धूल सनाती रहती।

गंगा मौसी सबकी मौसी
घर-घर में वह जाती रहती