भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न्याय की मूर्ति / राजीव रंजन
Kavita Kosh से
न्याय की आस में
न्यायालय के बाहर
खड़ी है खुद आँखों
पर पट्टी बाँधे निर्वस्त्र
न्याय की मूर्तिं।
एक समान न्याय
देने के लिए उसने
बाँधी थी आँखों
पर जो पट्टी,
उसी का फायदा उठा
दुःशासन ने कर लिया
आज उसका चीर-हरण।