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पक्षी-ज्वर और पुनर्जन्म / दिनेश कुमार शुक्ल

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अथक-
अथक उनके पंख
चन्द्रमा पर अपनी छाया छोड़ते हुए
तारों को छिटकाते
बादलों को देते हुए अपना आकार
हवाओं के अम्बार बटोरते
अथक
अपार उनके पंख

यूराल, एटलस, किलीमंजारो
की चोटियों की बर्फ़ को उड़ाते,
अपने प्रवाह से
पृथ्वी की नदियों में वेग भरते हुए,
काहिरा कालाहारी कांगो को
रोमांचित करते हुए
युद्धक विमानों-मिसाइलों को
झपट्टा मारकर तोड़ते
बुझाते हुए युद्ध की लपटों को
अपने झोंकों से,
अथक
अजेय उनके पंख!

वोल्गा-की-मिट्टी-सने पंजों के बल
उतरते हैं वे संवेग के साथ
अफ्रीका के जलाशयों पर छपाछप दौड़ते
धरती की गोद में वापस आते हुए
अथक
अबाध उनके पंख

अब जल रहे हैं उनके पंख पृथ्वी पर
भयानक विषमता के फैलते विषमज्वर में
पक्षीज्वर में
जल रहे हैं सम्पाती
जल रहे हैं उनके अनश्वर पंख

देखो देखो!
शताब्दियों बाद
फिर मुस्करायी है
मिस्त्र के प्राचीन स्फिंक्स की प्रतिमा-
कान देकर
ध्यान देकर सुनो उसके वचन

होते हैं अथक-अनश्वर-अजेय जिनके पंख
उन्हें लेना ही होता है जन्म बार-बार
और पुनर्जन्म माता से नहीं
अपनी राख से ही मिलता है

धीरे-धीरे उड़ रही है राख
सुगबुगाहट हो रही है
शुरू हो रही है पंखों की फड़फड़ाहट
आहट आ रही है...।