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पढ़-पढ़ कथा तुम्हारी / मधुकर अस्थाना
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पढ़-पढ़ कथा तुम्हारी
राजा राम जी
हम हो गये भिखारी
राजा राम जी
टूटा सेतु फट गयी धरती
नदी हो गयी खूनी
बजी ईंट से ईंट निशायें
रनिवासों की सूनी
सिर पर चढ़ी उधारी राजा राम जी
चढ़े-गिरे सेन्सेक्स
आत्महत्या कर रहीं दिशाएँ
रूप बदलकर भूखे मौसम
कब तक प्राण बचाएँ
खुशी हुई बाज़ारी राजा राम जी
सहचर बने घाव-घट्ठे
कुछ काँटे और फफोले
गली-गली में शीश झुकाए
एक हिमालय डोले
समय हो गया भारी राजा राम जी
दीप बुझा कर पृष्ठ विगत के
लेकर उड़ी हवाएँ
अधरों तक आकर फिर लौटी
शतवर्षीय दुआएँ
खाली नेह-बखारी राजा राम जी