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पढ़ता हुआ बच्चा (एक) / अक्षय उपाध्याय
Kavita Kosh से
बच्चे के बस्ते पर किताबें हैं
और उसके खेल का तमंचा भी
बच्चा भीतर के क़िताबी भय को
तमंचे से उठाने के लिए
ऊपर देखाता है
पिता के सच को
माँ की आँखों में झूठ बना देखता है बच्चा
और क़िताबों में लौटने की कोशिश करता है
बच्चे का बच्चा मन
सोचता है
क़िताब और तमंचे के बीच का सच
यानी सच बोलना कितना ज़रूरी नहीं--
किस वक़्त ज़रूरी है
और किस वक़्त
पिता और माँ का सच एक होगा
सपने में क़िताबों से पहले
खेल का तमंचा होगा और
अनुभव का गीत