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पढ़ने के बाद सब्जी बेचता बच्चा / नीता पोरवाल
Kavita Kosh से
हाँ, मेरे आका
बेशक़ आज
मेरी मटमैली आँखों में
तुम्हारे से रेशमी ख्वाब नहीं
आँधियों, बारिशों और
चटखती धूप से सख्त हुए कुछ बीज हैं महज
पर देखना
एक रोज फूट ही पड़ेंगे
असंख्य कुल्ले
छलछला उठी असंख्य स्वेद बूँदों की नमी से,
धधकते मेरे तलवों के ताप से
देखना
मैं एक रोज हासिल कर ही लूँगा
अपने लिए
अपनी मेहनत से
अपने हिस्से की सब्ज जमीन
तुम्हारी गगन चुम्बी
संगमरमरी अट्टालिकाओं के ठीक सामने