भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पतंग / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नीली, पीली
लाल पतंग,
करती खूब कमाल, पतंग!

उछल-उछलकर ऊपर जाती
आसमान में गोते खाती,
जादू के
करतब दिखलाती-
ले हिरना की चाल, पतंग!

इंद्रधनुष माथे पर टाँके
भरती है यह खूब कुलाँचें,
धरती से
अंबर तक छाया
सपनों का है जाल, पतंग।

वैसे तो एक पन्नी सस्ती
मामूली है इसकी हस्ती,
तेज हवा में
तन जाती पर
जैसे कोई ढाल, पतंग।

जब कोई दुश्मन आ जाए
आकर के इससे टकराए,
खूब पैंतरे
दिखलाती तब
बन जाती है काल, पतंग।