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पतझड़ का सुख / आभा पूर्वे
Kavita Kosh से
पतझड़ के बाद
शेष रह जाता है
प्रकृति में सिर्फ
वीरानियाँ
पर गूँजती रहती है
उन वीरानियों में भी
एक सुमधुर गीत
जो तुम छोड़ जाते हो
चुपचाप
निस्तब्धता के बीच
और
मैं/डूबी खोयी रहती हूँ
अगले पतझड़ तक ।