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पतन / विनोद शर्मा
Kavita Kosh से
उसकी जय-जयकार से शहर गूंजता रहता था
उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान खेलती रहती थी
जीवन के वृक्ष की एक ऊंची डाल पर विराजमान
वह सफल और महत्वपूर्ण व्यक्ति था
एक दिन सहसा वह धरती पर आ गिरा
क्या डाल उसके बोझ से टूटी थी?
शायद नहीं
क्योंकि पास ही एक कुल्हाड़ी पड़ी थी
जिसकी धार पर लकड़ी के रेशे थे
और हत्थे पर उसकी उंगलियों के निशान
तो क्या उसने स्वयं उस डाल पर
कुल्हाड़ी चलाई थी जिस पर वह बैठा था?
वह चकित था
किसने, कब थमाई उसे कुल्हाड़ी
उसे आज तक पता नहीं चला।