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पतबिछनी / पतझड़ / श्रीउमेश

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यै पतझड़ में पतबिछनी, पत्ता केॅ आज हलोरै छै।
यहेॅ एक छै हमरी सक्खी, ठुट्ठोॅ गाछ अगोरै छै॥
लागै छै सवरीं बोढ़ै छै, रामोॅ के अगवानी में।
केतना छै उत्साह-प्रेम, एकरा यै विगत जवानी में॥
कखनूँ चिलका केॅ लेॅ केॅ, अँचरातर दूध पिलाबै छै।
कखनूँ बेटी के ढीलोॅ हेरै छै, जी बहलाबै छै॥