भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पत्थरों के शहर में-2 / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पत्थरों के शहर में
पत्थर को पिघलते देखा
आखि़र कब तक पत्थर
पत्थर रहता
प्रेम
उसे भी
जीवन देता है