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पत्नी के अधिकार / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
घटा घोर घिरलॅ छै नभ में
चाँद सितारा छिपलॅ छै।
सूरज बाबा केनाँ निकथिन
तीन भोर केॅ बजलै छै।
कमर दर्द सेॅ बिकल मौनछै,
केकरा अभी बोलइयै जी?
‘‘फास्ट रिलीफ’’ दूरै में राखलॅ
आपनैहे केनाँ लगैइयै जी?
सब सुतलेॅ छै घोर नींद में
अभी जगाना नींकॅ नैं।
तोरोॅ बात अलग कुछ छेलै।
दोसरा केॅ कहना नीकेॅ नैं।
एहॅ रॅ बीतै छै जिनगी
दरद कहाँ सें जैतै जी?
केॅ रहते हमरा लग हरदम?
जाती मली उठैतै जी?
लाज लगै छै अलगे हमरा
वस्त्र हीन बनिये केनाँ?
तोंहें पंचतत्व में मिललौह
वापस अब अयभौ केनाँ?
जे भोग भोगना छै हमरा
दोसरें कैन्हें बाँटतै जी?
पत्नीं रोॅ अधिकार अलग छै
की मजाल कोय छाँटतै जी?
15/07/15 प्रातः 6.50