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पत्नी के लिए एक कविता / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
मुझ से बेहतर जानती है
रोटियाँ पकाने वाली औरत
भूख का व्याकरण
प्यार की वर्णमाला
बाजार जाते समय
जब सजा रही होती हैं अपनी अँगुलियाँ
वह सोच रही होती है तब
आग और लोहे के रिश्ते के बारे में
बच्चों के घर लौटने पर
सब से अधिक खुश नज़र आती है
रोटियाँ पकाने वाली औरत
जब कभी बज उठती है काँसे की थाली
घर के अन्दर
वह भूल जाती है सभी कुछ
दौड़ पड़ती है एकाएक
थाली की आवाज़ रोकने
कड़ाके की सर्दी में
जब दुबके होते हैं हम मोटी रजाई में
रोटियाँ पकाने वाली औरत
पका रही होती है गर्म रोटियाँ
फूलो के पौधों को सींचते हुए
वह माँगती है अपने लिए थोड़ी-सी हरियाली
पसार सके अपने पैर
उगा सके फूल
रोप सके तुलसी का नन्हा-सा पौधा