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पत्र / प्रेमलता वर्मा

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काग़ज़ पे उगा था
एक पीला आकाश
मेरे आँसू का नक्शा।

उस पत्र के मदहोश धुएँ को छाँट
मैं भीतर से बाहर
आने की कशमकश में
अपने को भीतर ही
रही हूँ ढकेल

उस धुएँ के गुबार में घिरी
नारियल की गिरी जैसी।