भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पथ की मुश्किलें / मोहन अम्बर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ifjp;

मिल गये हो मुझे पथ पर आज तो,
मित्र, सुन लो ज़रा पंथ की मुश्किलें।
धूप के प्यार से, फूल के रूप को,
जन्म तो था मिला, मृत्यु भी मिल गई।

बाग के सब सगे देखते रह गए,
उम्र की साँस को पीर यों छल गई।
यों सँवर कर सदा गन्ध लुटती यहाँ,
पर शिकायत नहीं गा रहीं बुलबुलें। मिल गये हो...

रात के आगमन की मिली सूचना,
तो बटोही थका था तनिक सो गया।
पर जगा तो घटी एक घटना दुखद,
सूर्य आया नहीं, चंद्रमा खो गया।

इस तरह शक्ति और युक्ति का द्वंद्व है,
जिन्दगी चल रही छुप रही मंजिलें। मिल गये हो...
जा रहे हो कहाँ किस लिए कुछ कहो,
स्वप्न के मत बनो, सत्य की भी सुनो।

आँधियों बिजलियों से करो दोस्ती,
भूमि की प्यास पर मेघ बन कर तनो।
आदमी के सुदृढ़ हाथ में बन्द है,
हार औ जीत की ये सभी हलचलें। मिल गये हो...