भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पद / 6 / बाघेली विष्णुप्रसाद कुवँरि
Kavita Kosh से
निरमोही कैसो जिय तरसावै।
पहले झलक दिखाय हमै कूँ अब क्यों बेगि न आवै।
कब सों तलफत मै री सजनी वाको दरद न आवै।
विष्णु कुँवरि दिल में आ करके ऐसो पीर मिटावै॥